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पर्यटन
bargad tree 550 years old

आंध्र प्रदेश का एक विशाल बरगद

यह जगह भारत के सबसे सूखे इलाकों में से एक है. यहीं पर खड़ा है थिम्मम्मा मारिमनु. बरगद के इस विशाल पेड़ को पहली बार १९८९ में गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया था (जिसे २०१७ में अपडेट किया गया).
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वह पेशे से पत्रकार थे और हंसी मजाक में ख़ुद को रिग्रेट अय्यर कहते थे, लेकिन, १९८९ में थिम्मम्मा मारिमनु की उनकी खोज क़ामयाब रही.
उन्होंने किंवदंतियों के आधार पर खोजबीन शुरू की और बताया कि आंध्र प्रदेश एक विशाल बरगद के पेड़ का घर है.
आउटरीच इकोलॉजी ने २००८ से २०१० के बीच भारत में पहचान बना चुके पेड़ों का सर्वेक्षण किया और देश भर के विशाल पेड़ों की नाप-जोख की.
सर्वेक्षण से पता चला कि भारत में दुनिया के सात सबसे बड़े बरगद के पेड़ हैं. हाल में उन्होंने यह भी पुष्टि की है कि थिम्मम्मा मारिमनु उनमें सबसे बड़ा है.
बरगद के पेड़ का आकार को लेकर हाल में विवाद हो गया जब स्थानीय वन विभाग ने दावा किया कि यह पेड़ ६६० साल पुराना है और पिछले २ साल के संरक्षण प्रयासों से ८ एकड़ क्षेत्र में फैला है.
बरगद का पेड़ (फाइकस बेंगालेंसिस) जिसे भारतीय बरगद या बरगद अंजीर भी कहते हैं, शहतूत परिवार का पेड़ है. यह मूल रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का पेड़ है.
बरगद का जीवन किसी दूसरे पौधे की सतह से शुरू होता है. इसके बीज अन्य पेड़ों की शाखाओं पर उगते हैं और इसकी बेल जैसी जड़ें धीर-धीरे जमीन की ओर बढ़ती हैं.
थिम्मम्मा मारिमनु की ४,००० से अधिक जड़ें हैं जिससे इसका चंदोवा बनता है.
चक्रवाती तूफानों और सूखे से इसे नुक़सान पहुंचा है. इसकी जड़ों का बड़ा हिस्सा टूटकर गिर गया है लेकिन यह पेड़ अब भी फैल रहा है.
जिन पहाड़ियों के बीच यह पेड़ खड़ा है वहां जल निकासी की बेहतरीन सुविधा है. सूरज की रोशनी भी पर्याप्त मिलती है और इसे फैलने की जगह भी भरपूर है.

बरगद को भारत का राष्ट्रीय पेड़ माना जाता है. इसका निरंतर विस्तार को शाश्वत जीवन का प्रतीक माना जाता है, ख़ास तौर पर हिंदू धर्म में.
समय के साथ यह पेड़ उर्वरता, जीवन, और पुनरुत्थान का विश्व-प्रसिद्ध प्रतीक बन गया है.
पूरे दक्षिण-पूर्व एशिया में उगने वाले बरगद की शाखाओं पर हिंदू, बौद्ध और अन्य धर्मों के लोग अक्सर रिबन बांधते हैं.इसकी जड़ों के पास देवी-देवताओं की मूर्तियां रखकर छोटा मंदिर बना दिया जाता है.
भागवद्गीता में बरगद की जड़ों के ऊपर की ओर और शाखाओं के नीचे बढ़ने का जिक्र है.यह एक काव्य रूपक है जो बताता है कि हक़ीक़त असल में आध्यात्मिक जगत की ही छाया है.
पूरे भारत में मंदिरों के परिसर में बरगद के पेड़ उगते हैं, लेकिन थिम्म्मा मारिमनु इतना विशाल है कि इसके बीच में पूरा का पूरा मंदिर बना हुआ है.
तीर्थयात्री यहां आने से पहले जूते-चप्पल उतार देते हैं. बरगद के बीचोंबीच पहुंचने पर वे सबसे पहले नंदी को प्रणाम करते हैं.
नंदी यहां थिम्मम्मा की याद में बनाई गई समाधि की रक्षा करते हैं. इस समाधि को संहार और पुनर्सृजन के देवता भगवान शिव को समर्पित किया गया है.
स्थानीय गाइड श्रद्धालुओं को थिम्मम्मा की पूरी कथा सुनाते हैं. वे पांच बार दाएं घूमते हुए समाधि की प्रदक्षिणा करते हैं, जो जीवन में सही दिशा में चलने का प्रतीक है.
माना जाता है कि समाधि ठीक उसी जगह पर है जहां थिम्मम्मा चिता की आग में कूद गई थीं.
२००१ में यहां खुदाई हुई तो पेड़ के केंद्र में पुरानी चूड़ियां और कुछ जेवर मिले, जिससे इस धारणा को बल मिला और तिरुपति के पुजारियों और अधिकारियों ने ठीक उसी जगह पर मंदिर बनाने के निर्देश दिए.
कई लोग यह भी मानते हैं कि सदियों से यहां आने वाले लोगों और पुजारियों ने इस पेड़ को सकारात्मक ऊर्जा से भर दिया है जो इसके विकास में सहायक बना है.
हर साल फरवरी-मार्च में महाशिवरात्रि के दौरान ४ दिनों के लिए लोग विशेष पूजा और अनुष्ठान के लिए इस पेड़ की छाया में खड़े रहते हैं.
कई श्रद्धालु मानते हैं कि इस पेड़ को छूने से उनके तन, मन और आत्मा में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.
वे इसकी मोटी जड़ों को पकड़कर १०-१० मिनट तक खड़े रहते हैं और पवित्र मंत्रों का जाप करते हैं.
पेड़ की औषधीय शक्ति शायद ग़लत नहीं है. वे धरती को सांस लेने वाली हवा देते हैं, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते. कई दवाइयां भी पेड़ों से मिलती हैं.
मिसाल के लिए, विलो की छाल से एस्पिरिन बनती है और ऑस्ट्रेलियाई चाय की पत्तियों से मेलाल्युका तेल निकाला जाता है जिससे त्वचा संक्रमण का इलाज होता है.
शोध से यह भी पता चला है कि प्राकृतिक हरियाली के बीच रहने से रक्तचाप और तनाव कम करने में मदद मिलती है..
कुछ लोगों को डर है कि आगंतुकों की बढ़ती संख्या इस पेड़ के अस्तित्व के लिए ख़तरनाक है.
भीड़, ख़ास तौर पर सालाना उत्सव के दौरान आने वाले लोग इसकी जड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. अच्छी बात यह है कि लोग इस पेड़ को बचाने में भी मदद कर रहे हैं.
स्थानीय वन विभाग के लोग यहां नियमित रूप से आकर इसकी जड़ों के पास मिट्टी डालते हैं और क्षतिग्रस्त डालियों को सहारा देने के लिए पत्थर के चबूतरे बनाते हैं.
तीर्थयात्रियों के लिए रास्ते बनाए गए हैं और उनसे अपील की जाती है कि जब तक यहां रहें उन्हीं रास्तों पर रहें.
सबसे ज़्यादा मदद करते हैं ततैये. अंजीर परिवार के सभी पेड़ों- थिम्मम्मा मारिमनु सहित- को ततैये परागित करते हैं. ये ततैये पेड़ के कुदरती आवास का इस्तेमाल अंडे देने के लिए करते हैं.
पेड़ों के ऊपर लगे छोटे लाल अंजीर ततैयों को अंडे देने के लिए आकर्षित करते हैं, जो बाद में बरगद के विशाल पेड़ों का परागण करके बढ़ने में मदद करते हैं.
थिम्मम्मा जिस शांत और एकांत परिवेश में है वहां यह भरोसा नहीं होता कि भारत का तीसरा सबसे ज़्यादा आबादी वाला शहर बेंगलुरू सिर्फ़ १८० किलोमीटर दूर है.
शहर की भीड़भाड़ से दूर यह पेड़ पक्षियों के गीत सुनता है. इसकी शाखाओं से चमगादड़ लटके रहते हैं और बंदर मंदिर की छत पर बैठकर प्रसाद का इंतज़ार करते हैं.
इस पेड़ की किंवदंतियों में जानवर भी शामिल हैं. इनके मुताबिक यहां के पक्षी रात में सोते नहीं हैं सांपों ने कसम खाई है कि वे यहां किसी को नहीं काटेंगे.
इन कहानियों में कोई सच्चाई हो या नहीं, लेकिन थिम्मम्मा मारिमनु उर्वरता, जीवन और पुनरुत्थान का शाश्वत प्रतीक बन गया है.
सदियों से यह लोगों को शांति दे रहा है. यह पेड़ अभी बढ़ रहा है, यानी आने वाली कई पीढ़ियों तक यह ऐसा करता रहेगा.